Twitter Twitter
x
Book Ticket
Fees & Timing

CHANDRAYAAN-2 ROVER

Description :

Launched in 2019, Chandrayaan-2 was India's second mission to the moon. After various attempts to partner with other space agencies, it was decided that Chandrayaan-2 would be purely based on home-grown technology. Chandrayaan-2 comprises of an orbiter which performs mapping from an altitude of 100 kilometres (62 miles), a lander (Vikram) which was meant to make a soft landing on the lunar surface, send out the rover (Pragyan) and land near Moon’s South Pole, a triumph not accomplished before by any other mission.


The principal purpose of Chandrayaan-2 was to exhibit the capacity to soft-land on the lunar surface and work a robotic rover on the surface. The mission carried 13 Indian scientific instruments for experiments to determine lunar topography, mineralogy, elemental abundance, the lunar exosphere, and signatures of hydroxyl and water ice.


Chandrayaan-2 stack was first put in an Earth parking orbit of 170 km perigee and 40,400 km apogee by the launch vehicle. It then performed orbit-raising operations followed by trans-lunar injection using its own power.


A NASA instrument for Laser ranging was carried by the mission as a mark of cooperation between the two space agencies. The collaboration included the use of Deep Space Network of NASA for navigation and guidance.


A BOT NAMED WISDOM


Chandrayaan-2's Rover was a 6-wheeled robotic vehicle named Pragyan. The word translates literally as wisdom. The name is aptly given to the robot made to study the moon, which is said to be the oldest undisturbed record of the history of our solar system. It was capable of generating 50 W of energy using solar power, which would be enough to sustain its basic functions.



While there were several setbacks while communicating with the lander, the mission is still considered successful as the orbiter was able to record important information and will remain operational for 7 years.


CHANDRAYAAN-2 ROVER

વધુ વિગત :


CHANDRAYAAN-2 ROVER

अधिक जानकारी :

2019 में लॉन्च हुआ चंद्रयान-2, चंद्र पर भारत का दूसरा मिशन था। कई अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ साझेदारी करने के विभिन्न प्रयासों के बाद यह निर्णय लिया गया कि चंद्रयान-2 विशुद्ध रूप से स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा। चंद्रयान -2 में एक ऑर्बिटर शामिल है जो 100 किलोमीटर (62 मील) की ऊँचाई से मैपिंग करता है और एक लैंडर (विक्रम) जो चंद्र सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए, रोवर (प्रज्ञान) को भेजने के लिए और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंड करने के उद्देश्य से बनाया गया है। किसी भी अन्य मिशन द्वारा ऐसी जीत पहले कभी हासिल नहीं की गई है।


चंद्रयान -2 का मुख्य उद्देश्य चंद्र सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग की योग्यता को दिखाना और सतह पर रोबोटिक रोवर को चलाना था। मिशन में लूनर टोपोग्राफी (चंद्र स्थलाकृति), मिनरॉल्जी (खनिज विज्ञान), एलिमेंटल एबंडेंस(तात्विक बहुतायत), लूनर एक्ज़ोफेयर(चंद्र बहिर्मंडल) और हाइड्रॉक्सिल तथा वाटर आइस के हस्ताक्षर निर्धारित करने के प्रयोग के लिए 13 भारतीय वैज्ञानिक उपकरण(इन्स्ट्रयुमेन्ट) लगे थे।


चंद्रयान -2 के स्टैक को पहली बार लॉन्चिंग वाहन द्वारा 170 किमी की परिधि और 40,400 किमी दूरतम बिंदु पर पृथ्वी की एक पार्किंग कक्षा में स्थापित किया गया था। इसके बाद उसने अपनी शक्ति का उपयोग करके ट्रांस-लूनर इंजेक्शन द्वारा ऑर्बिट बढ़ाने की कामगिरी की।


दोनों एजेंसियों के बीच सहयोग की निशानी के रूप में लेज़र रेजिंग के लिए नासा का इन्स्ट्रयुमेन्ट भी लिया गया था। सहभागिता में नेविगेशन और मार्गदर्शन के लिए नासा के डीप स्पेस नेटवर्क का उपयोग शामिल था।


प्रज्ञान नाम का बॉट


चंद्रयान -2 का रोवर 6 पहियों वाला रोबोटिक वाहन था, जिसका नाम प्रज्ञान रखा गया था। इस नाम का शाब्दिक अनुवाद बुद्धिमत्ता होता है। चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए बनाए गए रोबोट को यह नाम दिया गया है, कहा जाता है कि यह हमारे सौर मंडल के इतिहास का सबसे पुराना अविवादित रिकॉर्ड है। यह सौर ऊर्जा का उपयोग करके 50 वॉट की ऊर्जा पैदा करने में सक्षम था, जो इसके बुनियादी कार्यों को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है।


ऐसा कहा जाता है कि मिशन केवल आंशिक रूप से असफल रहा था, जबकि ऑर्बिटर की बात करें तो वह महत्वपूर्ण माहिती को रिकॉर्ड करने में काफी हद तक सक्षम साबित हुआ था और आगे सात साल तक यह कार्यरत रहेगा।